गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर
लेखक
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स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
स्वामी दर्शनानन्द एक दार्शनिक और आर्य समाज के अग्रणी विद्वान थे उन्होंने विविध विद्याओं का आश्रय लेकर अनेक विधाओं में साहित्य रचा जो अत्यन्त व्यिाल है।
◊ न्याय, वैशेषिक, सांख्य और वेदान्त दर्शन पर भाष्य।
◊ ई्श आदि 13 उपनिषदो पर भाष्य।
◊ मनुस्मृति सरलभाषा टीका
◊ श्रीमद्भगवद्गीता सिद्धान्त
◊ विभिन्न धार्मिक विषयों व मत-मतान्तरों पर लगभग 170 टैªक्ट।
◊ उपन्यास (जिनकी संख्या पाँच )।
◊ लघुकथा - कथा पच्चीसीै
◊ जंग-ए-आजादी नामक काव्यकृति जिसमें बारह मासा गजल, रेख्ता, रूमाल, पद स्तोत्र, कुण्डलियां, मुसद्दस हम्द अशरार आदि हिन्दी-उर्दू के छन्द हैं।
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श्री नरदेवशास्त्री वेदतीर्थ रावजी
शिक्षा, समाज और राजनीति के क्षेत्र तके अति व्यस्तता पर भी रावजी ने एक बहुत बड़े साहित्य की रचना की है- (1) आर्यसमाज का इतिहास - तीन भागो में
◊ आर्यसमाज का इतिहास - तीन भागो में
◊ स्वामी शुद्धबोध तीर्थ का जीवन चरित्र
◊ ‘ऋग्वेदालोचन’ और ‘गीताविम्र्य’
◊ पत्रपुष्प - 2 भाग
◊ राजनीति शास्त्र पर ग्रन्थ ‘राज्शास्त्र’
◊ आत्मकथा और लगभग 6 अन्य ग्रन्थ जो विभिन्न विड्ढयों पर हैं।
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पं0 पदम सिंह शर्मा
हिन्दी साहित्य के अत्यन्त उच्चकाटि के साहित्यकार। पं0 जी के घनिष्ठ मित्रों में मुंशी प्रेमचन्द और पं0 नाथूराम शर्मा जैसे साहित्यकार रहे।
◊ 1920 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति।
◊ 1913 में बिहारी-सतसई पर मगंलाप्रसाद पारितोड्ढिक प्राप्त हुआ।
◊ ‘पदमराग’ और ‘प्रबन्धमज्जरी’
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डॅा0 मंगल देव शास्त्री
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आचार्य उदयवीर शास्त्री
महाविद्यालय के सुयोग्य स्नातक आचार्य जी की प्रतिष्ठा उनके न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदान्त के ‘विद्योदय भाष्य’ के अतिरिक्त,सांख्य सिद्धान्त, सांख्य दर्शन का इतिहास, वेदान्त दर्शन का इतिहास, द एज आफॅ शंकर, कौटिल्य अर्थशास्त्र वाग्भटालंकार जैसे ग्रन्थों का प्रणयन किया।
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डॅा0 हरिदत्त शास्त्री
महाविद्यालय के कर्णधारों में से एक पं0 भीमसेन शर्मा के बहुगुण पुज्ज पुत्र डॅा0 हरिदत्त शास्त्री का संस्कृत साहित्य को अप्रतिम यागदान रहा है। इनके प्रमुख ग्रन्थों में काव्यकार, नाट्शास्त्र के दो अध्याय, ऋक-सूक्त संग्रह, मीमांसा परिभाषा, शिवमहिम्न स्तोत्र, खण्डनखाण्डखाद्य की आलोचना, परिभाषेन्दु परिष्कार, का्ियका टीका (चार अध्याय), पारस्कर गृह्यसूत्र टीका, साहित्यदर्पण संस्कृत टीका, चम्पू कव्य की आलोचना, काव्यमीमांसा हिन्दी टीका (15 अध्याय) आदि हैं।
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पं0 रामावतार शास्त्री
मीमांसा और वेदान्त के विद्वान पं0 जी के विशेष ग्रन्थों में ‘पंचदशी’ की टीका तथा ‘बोधसार’ की टीका का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
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डॅा0 गौरीशंकर आचार्य
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डॅा0 नारायणमुनिश्चतुर्वेद
काव्य रचना तथा भाषणशैली के अद्वितीय मर्मज्ञ आचार्य जी ने स्तुत्यितकम्, मुक्तक्यतक, श्रुतिसुधा, यज्ञप्रसाद पं0 प्रका्यवीर शास्त्री - यश प्रशस्ति तथा सांस्कृतिक विचार के अतिरिक्त ‘गायत्रीदशन’ और ‘सार्वभौमिक वैदिकद्र्यन’ नामक ग्रन्थों का प्रणयन किया।
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पदमश्री कपिलदेव दिवेदी
डाॅ0 दिवेदी न केवल भारतवर्ष के अपितु संसार के प्रमुख विद्याविदों, भाड्ढाविदों तथा वेदविदों में सम्मानपूर्वक परिगणित किये जाते है। आप संस्कृत भाषा के सरलीकरण पद्धति के उन्नायक, एवं प्रवर्तक माने जाते हैं। संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा। आपका जन्म 1918 में गहमर (गाजीपुर) में हुआ। 9 वर्ष की अवस्था में शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल महाविद्यालय आए। यहाँ आपने यजुर्वेद और सामवेद कण्ठस्थ करके ‘दिवेदी’ की उपाधि अर्जित की।
आपके द्वारा रचित मौलिक वैदिक साहित्य इतना विशाल है कि आप स्वयं में एक संस्था प्रतीत होते थे। वेदामृत के 40 भाग और अन्यान्य सैकड़ों ग्रन्थों का प्रणयन, सम्पादन, अनुवाद, आलोचना आदि विधाओं में आपने किया। संस्कृत साहित्य में अपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने 1991 में आपको ‘पदमश्री’ से अलंकृत किया। इसके अतिरिक्त दर्जनों पुरस्कारों से आप सम्मानित किए गए।
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डॅा0 सुरेन्द्रनाथ दीक्षित
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पदमश्री क्षेमचन्द्र सुमन
16 सितम्बर 1916 को जन्में पं0 क्षेमचन्द्र ‘सुमन’ ने महाविद्यालय के सुविख्यात वैदिकविद्वान, स्वाधीनता सेनानी तथा भरतीय सस्ंकृति के मूर्तरूप आचार्य नरदेव शास्त्री से शिक्षा प्राप्त की। जिनके व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव इनके चरित्र पर पड़ा। मां भारती के मन्दिर में जिन कृतियों का पावन नैवैद्य लेकर सुनमजी ने अनन्यार्चना की, उनमें मौलिक और सम्पादित दोनो प्रकार की रचनाएं है। मौलिक कृतियों की संख्या तीन दर्जन से अधिक और सम्पादित कृतियों की संख्या पाँच दर्जन से अधिक है। सुमन जी की सबसे महत्वपूर्ण देन दे्य-विदे्य के हजारों दिवंगत हिन्दी-सेवियों के सचित्र जीवन परचिय का संकलन करके उन्हे ‘दिवंगत हिन्दी सेवी’ नाम से दो खण्डों में प्रका्िशत कराना है। उनकी हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए उन्हे 1984 में भारत सरकार ने ‘पदमश्री’ की उपाधि से विभूिषत किया।
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स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक
स्वामी जी का पूर्व नाम प्रियरत्न ‘आर्ष’ था। आपने अथर्ववेद पर मौलिक चिन्तन के कई ग्रन्थ जिनमें -‘वैदिक स्वप्न विज्ञान’ और ‘अथर्ववेदीय मन्त्र विज्ञान’ है और ‘सामवेद का अध्यात्मिक भाष्य’ का सृजन किया।
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डॅा0 सूर्यकान्त
सन 1919 के महाविद्यालय के स्नातक ने लन्दन में आक्सफोर्ड विश्वद्यिालय से डी0फिल की उपाधि प्राप्त की। साहित्यसृजन के क्षेत्र में आपका महान योगदान है।आपकी कृतियों में वैदिक देव्यास्त्र, भरतीय धर्म और द्र्यन, वैदिक कोड्ढ तथा साहित्यमीमांसा आदि मिलाकर 70 की संख्या में हैं।
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श्री पं0 भीमसेन शर्मा
आपने मौलाना हाजी की ‘मनाजाते बेवा’ के छन्दों का संस्कृत अनुवाद ‘विधवाभिविनय’ नाम से किया।इस ग्रन्थ की पं0 महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।
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श्री पं0 नाथूराम शर्मा शंकर
मुंशी प्रेमचन्द और पं0 पदम सिंह के मित्र अत्यपत उच्चकोटि के कवियों में गिने जाते हैं।
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श्री पं0 दिलीपदत्त उपाध्याय
शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में महाविद्यालय का नाम रोशन करने वाले विद्वानों में उपाध्याय जी प्रमुख हैं।महर्षि दयानन्द के उदात्त चरित्र चित्रण के रूप में आपका ‘मुनिचरितामृतम्’ महाकाव्य संस्कृत शिक्षा-जगत् में अत्यन्त प्रसिद्ध है।आपकी अन्य रचनाओं में सस्ंकृतालोक, प्रतापचम्पू तथा ऋतुवर्णन उल्लेखनीय है।
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पं0 हरिशंकर शर्मा
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डॅा0 नन्दक्यिोर शास्त्री
आपने न्यायकुसुमांजली, तर्कभाड्ढासार , महाभाष्य (पस्प्याह्निक) तथा सर्वद्र्यन संग्रह टीका आदि प्रसिद्ध कृतियों की रचना की।
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आचार्य हरिगोपाल शास्त्री
राष्ट्रीय भव्य भावनाओं से ओतप्रोत, ओजस्वी वक्ता, कु्यल प्रशासक, संस्कृत के उद््भट् विद्वान, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित आचार्यजी आधुनिक युग में गुरुकुल शिक्षा पद्धति के समवाहक ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति संस्कृत भाड्ढा , सभ्यता एवं सस्ंकारो के सम्पोड्ढक भी हैं।आपकी चर्चित कृतियों में ”बालभारतम् महाकाव्य का आलोचनात्मक अध्ययन“ और ”बालभारतम् महाकाव्य की विस्तृत भूमिका एक विवेचन“अग्रगण्य हैं।
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पं0 प्रकाशवीर शास्त्री
अदभुत वक्ता, दूरद्शी नेता तथा विलक्षण राजनीतिज्ञ प्रकाशवीर शास्त्री का सार्वजनिक जीवन उनकी शिक्षा की समाप्ति के साथ ही आरम्भ हो गया था। 1958, 1962 और 1967 में निरन्तर लोकसभा के लिए वे निर्वाचित हुए।गुरुकुल िशक्षा-पद्धति और आर्य समाज के प्रति विशेष भक्ति व अनुरक्ति उनमें थी। संसदवीथी में महर्षि दयानन्द का चित्र तथा महर्षि दयानन्द पर डाक टिकट जारी करवाना उनका ही कार्य था। मेरे सपनो का भारत, गोहत्या या राष्ट्रहत्या तथा धधकता कश्मीर आपकी प्रमुख रचनाएं हैं।
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डॅा0 गणे्यदत्त शर्मा
महाविद्यालय के सुयोग्य स्नातक डॅा0 गणे्यशत्त शर्मा की संस्कृत व हिन्दी लेखन में समान गति है। उनकी मुख्य कृतियों ऋग्वेद में दा्र्यनिक तत्व, निबन्ध पारिजातम्, भारत में धर्म और सस्ंकृति, वैदिकचिन्तन की धाराएं, विवेकानन्दचरितामृतम् हैं।
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डॅा0 चन्द्शेखर लोखण्डे
महाविद्यालय के प्रसिद्ध स्नातक डॅा0 चन्द्शेखरजी ‘वेदों मे पर्यावरण’, ‘हैदराबाद मुक्ति संग्राम का इतिहास’, वैचारिक मुक्तक आदि दर्जनो कृतियां हैं।
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